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मुहूर्त शास्त्र

मनासश्री गोपाल राजू
रूड़की – २४७ ६६७
www.bestastrologer4u.blogspot.in
मुहूर्त शास्त्र के मूल शास्त्वर् ग्रंथों में यदि र्लाशें र्ो रोगों के उपचार के ललए शुभ समय, दिन, माह आदि का सुन्िर वर्तन लमल जाएगा। इनका यदि बौद्धिकर्ा से अनुसरर् ककया जाए र्ो अच्छे पररर्ामों की सम्भावना ननश्चचर् रूप से बढ़ जाएगी। ककस समय धचककत्सक से लमलें? ककस दिन से अथवा ककस समय से उपचार प्रारम्भ करें? शल्य धचककत्सा में जा रहें हैं र्ो ककस समय उसके ललए धचककत्सक र्ैयारी प्रारम्भ करें। ऐसे अनेक प्रचन है जो श्जज्ञासु मन में उठ रहें होंगे। मार थोड़े से ज्ञान और अल्प समय में इन प्रचनों का समािान लमल सकर्ा है। बस थोड़ा सा श्रम, श्रद्िा और संयम की आवचयकर्ा है इन शुभ मुहूररतर्ों की गर्नाओं के ललए।
अब से लगभग पैर्ींस वर्त पूवत मैंने ववधचर प्रयोग ककए थे इस दिशा में। मेरे पररवार में भाई की पत्नी की गंभीर शल्य धचककत्सा होनी थी। खेल-खेल में मैं मुहूर्त शास्त्र की पुस्त्र्कें र्लाशने लगा। कुछ सूर हाथ लगे। अकस्त्मार्र ध्यान आया कक गभतवर्ी मदहला की यदि शल्य धचककत्सा होर्ी है र्ो क्यों न उस भावी संर्ान के ललए एक सुन्िर सा समय गर्ना ककया जाएं। सब जानर्े ही हैं कक बच्चे की जन्म पत्ररका उसके जन्म के समय के आिार पर ही बनाई जार्ी है। डॉक्टर ने र्ीन दिन के अन्िर अन्िर सजतरी के ललए दिशा ननिेश िे ही रखें थे। सौभाग्य से सब पररधचर् थे। उनको मैंने चार लमनट का एक समय गर्ना करके दिया। नलसतगं होम में धचककत्सकों और स्त्टॉफ के सहयोग से ठीक उस ननदितष्ट समय में ही शल्य धचककत्सा द्वारा एक सुन्िर कन्या का जन्म हुआ। आज हमारे सब पररधचर् मानर्े हैं कक वह लड़की पररवार के ललए ककर्नी भाग्यशाली लसद्ि हुई। उसके बाि से र्ो एक-िो नहीं िजतनों की संख्या में ऐसे प्रयोग करवार्ा रहा हूूँ । यह बार् अलग है कक अधिकांशर्ः ऐसे उिाहरर् रहे हैं कक जहाूँ सुननश्चचर् समय में सजतरी ककन्हीं कारर्ों से सम्भव ही नहीं हो सकी।
जो लोग आयुवेदिक धचककत्सा पद्यनर् से पररधचर् हैं वह यह अवचय स्त्वीकार करेंगे कक मुहूर्त और मंर त्रबना यह पद्यनर् त्रबल्कुल ननष्प्रभाव है। और्धि के ललए ववलभन्न घटकों के जुटाने से लेकर रोगी को िेने र्क के सब मुहूर्त मुहूर्त ग्रंथों में ननिेलशर् हैं। आज
समय के अभाव, संयम की कमी और सबसे ऊपर िन लौलुपर्ा की अंिड़ िौड़ में इस मुहूर्त ज्ञान को सवतथा भुला ही दिया गया है। थोड़े से श्रम द्वारा यदि शुभ मुहूर्त धचककत्सा अथवा शल्य कमत के ललए र्लाश करके र्द्नुसार आगे बढ़ा जाए र्ो पररर्ाम ननश्चचर् रूप से उत्तम लसद्ि होंगे।
चीनी ज्योनर्र् शास्त्र में रोगों के ननिान के ललए कुछ ऐसे सयम सुननश्चचर् ककए हैं श्जसमें उस रोग ववशेर् का यदि उपचार कमत प्रारम्भ ककया जाए र्ो शुभ फलिायी लसद्ि होर्ा है ज्योनर्र् की गूढ़ गर्नाओं से सवतथा अलग यह वह प्राकृनर्क ननयमों के अनुकूल समय हैं जो हर कोई सरलर्ा से अपना कर आशार्ीर् पररर्ाम पा सकर्ा है।
1. सािारर् रोग दिन में 11 से 3 बजे र्क
2. पेट के रोग सुबह 7 से 9 बजे र्क
3. गुिे के रोग दिन में 11 से 1 बजे र्क
4. शारीररक कष्ट सुबह 9 से 11 बजे र्क
5. ललवर के रोग दिन में 1 से 3 बजे र्क
6. हृिय रोग दिन में 11 बजे से 1 बजे र्क
7. मूर रोग दिन में 3 से 5 बजे र्क
8. फेफड़े रोग दिन में 3 से 5 बजे र्क
चीनी धचककत्सा पद्यनर् में माना गया है शरीर में प्राकृनर्क ऊजात की शश्क्र् दिन में 3 बजे से 5 बजे र्क सवातधिक होर्ी है।
इसललए वहाूँ सलाह िी जार्ी है कक गम्भीर रोगों का इलाज दिन के ननदितष्ट समयानुसार ही ककया जाए।
यदि शल्य धचककत्सा में जा रहे हैं र्ो इसी प्रकार प्रयास करें कक िोनों पक्षों की 4, 9, 14 नर्धथयाूँ, सोमवार, मंगलवार अथवा गुरूवार और अश्चवनी, मृगलशरा, पुष्प, हस्त्र्, स्त्वानर्, अनुरािा, ज्येष्ठा, श्रवर् अथवा शर्लमर्ा नक्षरों के संयोग एक साथ लमल जाएं। यदि पूर्तर्या ववशुद्ि गर्नाओं में जाना है र्ो ज्योनर्र् ज्ञान, ग्रहगोचर आदि का ज्ञान परम आवचयक है।
और्धि सेवन के ललए प्रारम्भ करने के ललए समय के अभाव में यदि ववशुद्ि गर्ना करना सम्भव न हो र्ब पंचाग से मार नर्धथ, वार और नक्षर िेखकर उपचार प्रारम्भ कर सकर्े हैं।
शुक्ल पक्ष की 2, 3, 5, 6, 7, 8, 10, 11, 12, 13 और 15 नर्धथयाूँ इसके ललए शुभ लसद्ि होर्ी हैं।
संयोग से यह नर्धथयाूँ रवववार, सोमवार, बुिवार, गुरूवार अथवा शुक्रवार की पड़र्ी हैं र्ो यह और भी अच्छा योग है। इनमें यदि अश्चवनी, मृगालशरा, पुनवतस, पुष्प, हस्त्र्, धचरा, स्त्वानर्, अनुरािा, मूल, श्रवर्, घननष्ठा और रेवर्ी नक्षर भी लमल जाए अथातर्र नर्धथ, दिन और नक्षर र्ीनों के संयोग एक साथ बन जाएं र्ब र्ो बहुर् ही संर्ोर् जनक पररर्ाम और्धि और धचककत्सा के लसद्ि हो सकर्े हैं।
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