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शिवलिंग

शिवश िंग कल्याणमय है
भगवान शिव परम कल्याणमय हैं। उनके स्वरूप में, ी ा में तथा साधन में सववत्र परम कल्याणकारी कल्याण ही भरा है। वेद, पुराण आदद के अध्ययन से यह स्पष्ट रूप से कहा जा सकता है कक सृष्ष्ट के बनाने ,बढ़ाने और ववनाि करने वा े त्रत्रदेव अथावत बह्मा, ववष्णु और महेि ही हैं। शिव क्या हैं, उनकी िष्क्त कैसी है, सिंसार का सववनाि अथवा अशमट कल्याण करने में वह कहााँ तक समथव हैं, शिवश िंग की वव क्षणता के सुफ आदद का वववेचन कल्याण से उद्धत रूपरेखा में यहााँ पाठकों के ाभाथव प्रस्तुत कर रहा ह ाँ।
िास्त्रों में शिव के अनेक नाम शम ते हैं, यह सब उनके गुण कमावदद के अनुसार ननददवष्ट ककए गए हैं। प्र यकारी, भयकारी, महाक्रोधी अथवा सिंहारक गुण को देखते हुए उन्हें रुद्र नाम से चररताथव ककया गया है। ऋगवेद, यजुवेद तथा अथववेद में शिव के ईि, ईश्वर, ईिान, रुद्र, कपदी, शिवकण्ठ, सववज्ञ, सवविष्क्तमान आदद नाम ननददवष्ट ककए गए है। अके े ऋग्वेद की 60-70 ऋचाओिं में शिव के नाम, काम और स्वरूप आदद का वणवन शम ता है। वेदानुसार क्रोधधत शिव को िान्त करने के श ए ितरुद्रका स्वतन्त्र ववधान है अथवेद में इन्हें सहस्त्र चक्षु, नतगमायुध, वज्रायुध और ववधुच्छाष्क्त आदद कहा गया है। सामवेद में इन्हें अष्ग्न रूप कहा गया है।
कैवल्य, अथवव, तैष्ततरीय, श्वेताश्वतर और नारायण आदद उपननषदों में तथा आक्ष्वा ायनादद गृहृयस त्रों में इन्हें न्न्यम्बक, त्रत्र ोचन, त्रत्रपुरहन्ता,ताण्डनतवक, अष्टम नतव पिुपनत, औषधववधधज्ञ, आरोग्यकारक, विंिवधवक और नी किंठ आदद कहा गया है। शिव,
वामन और स्कन्द आदद पुराणों में वाल्मीकीय रामायण, महाभारत और कुमारसम्भव आदद अनेक ग्रिंथों में उनके ोकोततर गुणों का वणवन ववस्तार से देखा जा सकता है।
शिव अपने सेवकों पर न तो कभी क्रोध करते हैं और न उनकी दहसािं। वह सदैव मिंग कर और कृपा ु रहते हैं। इससे ही शिव का नाम साथवक होता है। आबा वृद्ध को आरोग्य रखने, पिुओिं तक को स्वस्थ करने और प्रतयेक प्रकार की महौषधधयों का ज्ञान होने के कारण आप को वैद्यनाथ कहा गया। धन-पुत्र और सुख-सौभाग्य आदद देने के कारण आप सदाशिव कह ाए। िीघ्र ही भक्तों पर प्रसन्न होने के कारण आिुतोष कहे गए। इन सबसे ऊपर आप सववभ तेि कह ाए
अथावत् सवेि और सवविष्क्तमान। सववभ तेि का अथव है पिंचमहाभ त अथावत् पृथ्वी, अप्, तेज, वायु और आकाि। वह इनके अधधपनत भी कह ाए। अथावत् यथारूधच इन पिंचमहाभ तों से कायव करवाने वा े। यह सववववददत है कक सिंसार और उसका प्रतयेक प्राणी और पदाथव पिंचमहाभ तों से ही प्रकट होता है और यह सब ननदहत है भ तेश्वर की इच्छा पर। पाठक स्वयिं अनुमान गाएिं इस महािष्क्त का।
यथाथव ननवृनत मागव पर अग्रसर होने के श ए शिव के ववशभन्न नामों के साथ-साथ श िंगोपासना का वविेष महततव िास्त्रों में शम ता है श िंग िब्द का साधारण अथव धचन्ह अथवा क्षण हैं। देव धचन्ह के अथव में श िंग िब्द शिवजी के ही श िंग के श ए आता है। अन्य प्रनतमाओिं को म नतव कहा जाता है। क्योंकक यहााँ ध्यान म नतव के अनुरूप ही होता है। परन्तु वास्तव में श िंग में आकार या रुपक उल् ेखन नहीिं होता है यह धचन्ह मात्र में है और धचन्ह भी पुरूष की जननेष्न्द्रय का सा है। पुराणानुसार '' यनाश िंगमुच्यते'' कहा गया है अथावत् य या प्र य से श िंग कहते प्र य की अष्ग्न में सब कुछ भस्म होकर शिवश िंग में समा जाता है। वेद-िास्त्रादद भी श िंग में ीन हो जाते हैं कफर सृष्ष्ट के आदद में सबकुछ श िंग से ही प्रकट होता है। अतः य से ही श िंग िब्द का उद्भव ठीक है। उसी से य या प्र य होता है और उसी में सिंप णव सृष्ष्ट का य होता है। दुभाग्यव से श िंग िब्द को कुछ आ ोचक नाष्स्तक अश् ी अथो में भी ेते हैं। वास्तव में यह कल्पना परम म खवता और अज्ञानता दिावती है। वैददक िब्द का यौधगक अथव ेना ही बुवद्धमानी और परम ततव की प्राष्तत है।
शिव मष्न्दरों में पाषाण-ननशमवत शिवश िंग की अपेक्षा बाणश िंग की वविेषता ही अधधक है। अधधकािंि उपासक मृण्मय शिवश िंग अथवा बाणश िंग की उपासना करते हैं।
गरूपुराण तथा अन्य िास्त्रों में अनेक प्रकार के शिवश िंग ननमावण का ववधान है। उसका सिंक्षक्षतत वणवन भी पाठकों के ज्ञानथव श ख रहा ह ाँ।
1. दो भाग कस्त री, चार भाग चन्दन तथा तीन भाग कुिंकुम से 'गिंधश िंग' बनाया जाता है। इसकी यथाववधध प जा करने से शिव-सामुज्यका ाभ शम ता है।
2. ववववध सौरभमय पुष्पों से पुष्पश िंग बनता है इसे पृथ्वी के आधधपतय ाभ के श ए प जा जाता है ।
3. कवष वणव गाय के गोबर से 'गोिकृश िंग' ननशमवत होता है । यह गोबर अधर में ही श या जाता है । इसके प जन से ऐश्वयव की प्राष्तत होती है परन्तु ष्जसके श ए यह ननशमवत ककया जाता है उसकी मृतयु हो जाती है।
4. 'रजोमय श िंग' के प जन से सरस्वती की कृपा शम ती है व्यष्क्त शिव-सामुज्य पाता है।
5. जौ, गेह ,चाव के आटे से बने श िंग को 'यवगोध मिाश ज श िंग' कहते हैं । इससे स्त्री, पुत्र तथा श्री सुख की प्राष्तत होती है।
6. आरोग्य ाभ के श ए शमश्री से 'शसताखण्डमय श िंग' का ननमावण ककया जाता है ।
7. हरता , त्रत्रकटु को वण में शम ाकर ' वणज श िंग' बनता है यह उततम विीकरण कारक और सौभाग्य स चक होता है।
8. 'पाधथवव श िंग' से कायव की शसवद्ध होती है।
9. 'भस्ममय श िंग' सववफ प्रदायक माना गया है।
10. 'गुडोतथ श िंग' प्रीनत में बढ़ोततरी करता है।
11. 'विंिाकुर ननशमवत श िंग' से विंि बढ़ता है।
12. 'केिाष्स्थ श िंग' ित्रुओिं का िमन करता है।
13. 'दुग्धोद्रव श िंग' से कीनतव, क्ष्मी और सुख प्रातत होता है।
14. 'धात्रीफ श िंग' मुष्क्त ाभ तथा नवनीत ननशमवत श िंग कीनतव तथा स्वास्थ्य प्रदायक है।
15. 'स्वणवमय श िंग' से महामुष्क्त तथा 'रजत श िंग' से ववभ नत शम ती है।
16. कास्य और पीत के श िंग सामान्य मोक्ष कारक है।
17. सीसकादद से ित्रुनाथ और 'अष्टधातु श िंग' से सववशसवद्ध शम ती है।
18. पारद शिवश िंग महान ऐश्वयव प्रदायक माना गया है।
श िंग साधारणतया अिंगुष्ठ प्रमाण का बनाना चादहए। पाषाणादद श िंग मोटे और बड़े बनते हैं। श िंग से दुगुनी वेदी और उसका आधा योननपीठ करने का ववधान है। श िंग की म्बाई उधचत प्रमाण में न होने से ित्रु वृवद्ध होती है । योननपीठ त्रबना या मस्तकादद अिंग त्रबना श िंग बनाना अिुभ है। पाधथवक श िंग अपने अिंग ठे के एक पोर बराबर बनाना चादहए इसको ननशमवत करने का वविेष ननयम-आचरण है ष्जसके अभाव में वािंनछत फ की प्राष्तत नहीिं हो सकती।
श िंगचवन में बाणश िंग का अपना अ ग ही महततव है। वह हर प्रकार से िुभ, सौम्य सु क्षण और श्रेयस्कर है। प्रनतष्ठा में भी पाषाण की अपेक्षा बाणश िंग स्थापन सर -सुगम है। नमवदा नदी के सभी किंकर ििंकर माने गए हैं। इन्हें नमेदेश्वर भी कहते हैं। उनमें मनोरम म नतव ेकर चाव ों से परख देखें। तीन बार तौ ने पर भी यदद चाव बढ़ते रहें तो वह नमेदेश्वर वृवद्धकारक होगा। नमवदा में आधा तो ा से ेकर मनो तक के किंकर शम ते हैं। यह सब स्वतः प्रातत और स्वतः सिंघदटत होते हैं। उनमें कई श िंग तो बड़े ही अद्भुत, मनोहर ,वव क्षण और सुन्दर होते हैं। उनके प जन-अचवन से महाफ की प्राष्तत होती है। शमट्टी आदद से पाषाण या नमवदा की ष्जस ककसी म नतव का प जन करना है उसकी ववधध प ववक प्राण-प्रनतष्ठा, स्थापन आदद की ववधधयााँ अनेक ग्रिंथों में वर्णवत हैं। प जन-आराधन के यम-ननयम समझकर आगे बढ़ने में ही बौद्ववकता है। प्रयोग से पह े उनको देखकर समझ ेना इसश ए अनत आवश्यक है।
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