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नींद

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मानसश्री गोपाल राजू
रूड़की – उत्तराखंड
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दिन भर की आपाधापी, पररवार, पररजनों की चिन्ताएं, जीवन जीने के ललए आवश्यक साधन जुटाने की ममबद्धता और व्यस्तता उस समय चिन्ता और मानलसक संत्रास का कारण बन जाती है जब अपेक्षाओं के अनुरूप कुछ भी नह ं हो पाता। इस सबका अन्ततः िुष्पररणाम दिखाई िेने लगता है हमार नींि पर और हम अननद्रा रोग से ग्रलसत होने लगते हैं। िेखा जाए तो नींि न आने के एक-िो नह ं असंख्य कारण हो सकते हैं। पढ़ाई का बोझ, कोई व्यसन, रोग, शार ररक कष्ट, कोई घोर चिंता, ककसी
के कटुविन अन्तर तक पैठ जाना, ऋण, मुकिमें, ज़मीन, जायिाि की चिन्ताओं आदि के कारण धीरे-धीरे एक ऐसी अवस्था आ जाती है कक बबना नींि की िवा का सेवन ककए नींि ह नह ं आती। नींि कब लें, ककतनी लें, कैसे लें। शयन कक्ष कैसा हो कक शयन के ललए सुखि वातावरण लमले। खान-पान कैसा हो, ककस समय हो, ककतना हो कक उससे नींि पर कोई ववपर त प्रभाव न पड़े। योग, प्राणायाम, धमम-कमम आदि कैसे करें कक शांनत और िैन से कम से कम राबत्र तो व्यतीत हो आदि अनेक घटक स्वस्थ नींि के ललए आवश्यक हैं। परन्तु इन सबके बाि भी सुखि नींि से वंचित रहते हैं। समस्त सुख-सुववधाओ, एश्वयम के बाि भी कोई स्वस्थ नींि से वंचित रहता है। िूसर तरफ एक असहाय, ननधमन जीवन की आवश्यकता को भी पूरा न करने वाला असहाय, ननर ह अंककिन मस्ती और िैन की नींि सोता है। बहुत लम्बा ववषय है यह सब। बबना कहे सम्भवतः सब जानते हैं, समझते हैं और भोगते हैं। ववडम्बना यह कक जानने और समझने के बाि भी हम कुछ अर्जमत करने के ललए कममशील नह ं होते।
एक अत्यन्त सरल सी किया है। यदि सोने से पूवम इसका अध्ययन कर ललया जाए तो पुण्य के भागीिार तो बनेंगे ह बनेंगे सुखि नींि पाने के भी धनी बन सकते हैं।
सोने से पूवम मुंह, हाथ और पैर धोकर साफ कर लें। सोने के स्थान को अपनी सुववधा और सामर्थयमनुसार सुखि बना लें। जो भी आपके इष्ट हैं उनका ध्यान करें। श्वास के आने और जाने के िम पर ध्यान केर्न्द्रत करके उसको र्स्थर कर लें। जब श्वास बाहर छोड़ें तो रा….ऽ….ऽ….ऽ…. ऽ का धीरे से उच्िारण करें। ध्वनन के साथ-साथ पेट को वपिकाते जाएं। पूरा ध्यान इस बात पर केर्न्द्रत करें कक नाभी के नीिे तक की वायु नाक के नथुनों से रा….ऽ….ऽ…. ऽ के साथ बाहर ननकल रह है। धीरे-धीरे अब यह अभ्यास करें कक इस रा….ऽ….ऽ….ऽ में अ और ओ का नाि अन्िर ह अन्िर हो रहा है। अंतरे से स्थाई तक के रा और ओ िम के साथ-साथ सांस बाहर आ रहा है और िमशः पेट वपिक रहा है। शर र अन्िर से वायु शून्य हो जाने के साथ ह होठ स्वतः ह बन्ि हो जाएंगे और म ध्वनन स्वतः ह अन्तममन में होने लगेगी। पूरे िम में अ, उ और म अथामत्
ओम् का उच्िारण, गुंजन और नाि नाभी से लेकर अनादि िि तक का अभ्यास करना है। इसमें कह ं टेक नह ं लेना है। श्वास का कह ं स्तम्मन नह ं करना है बस अभ्यास यह करना है कक सब स्वतः होने लगे। समय का भी कोई बन्धन नह ं है। एक, िो, पांि, िस लमनट जो भी हो जाए और धीरे-धीरे स्वतः होने लगे।
एक र्स्थनत ऐसी आने लगेगी कक श्वास-ननश्वास के इस स्वतः अभ्यास से आप सुखि नींि के पाश में जाने लगेंगे।
एक बात यह अवश्य मन में रख लें कक सुनने, पढ़ने अथवा ककसी के समझाने आदि से यह किया कभी भी सम्भव नह ं हो सकती । इसके ललए आत्म ववश्वास, आस्था तथा सतत् अभ्यास करके एक पूरा पाठ्यिम तैयार करना पड़ेगा और उसके अनुरूप अपने अन्तः मन से तैयार करना पड़ेगा। तभी श्वास-ननश्वास का ममम स्पष्ट हो पायेगा और तद्नुसार सुखि नींि के ललए ककया जाने वाला यह प्रयास सफल हो पायेगा।

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